नदियों से बातें करना चाहता हूँ इस समय
पर टेलीफोन पर यह मुमकिन नही
उन दरख्तों का भी मेरे पास कोई नम्बर नही
जो रास्तों मे मिले थे
परिन्दों के पास कोई मोबाईल लोगा
इसकी कोई उम्मीद नही
जिनसे बतियाने की इच्छा होती है
उनके पास तक जाना पडता है हर बार
यह टेलीफोन फिर किस मर्ज़ की दवा है!
काम आता नही छदाम भर
और कमबख्त बज़ने लगता है वक्त बेवक्त
उस पर तुर्रा यह कि
जैसे ही उठाकर कहिए...हैलो!
सामने की आवाज़ कहती है
रांग नम्बर!(राजेश जोशी)
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