Tuesday, August 16, 2011

सज़ा

हम यों जीते हैं

जीना भी खता हो जैसे

ज़िन्दगी सिर्फ गुनाहों की सज़ा हो जैसे

मेरी खुंशिया छीनकर हवा ले गई मस्तानी

जीवन की स्थिर मंजिल पर

सिर्फ उदासी छोड गई है

चाहा था फूलों का सौरभ

पर कांटो ने उलझाया है

कलियां मेरे उपवन का रिश्ता

पतझड से जोड गई है

तेरी यादों से जो दूर रहूँ

क्या बचेगा मेरे जीवन मे

मेरी हर सांस तुझसे जिंदा है

वरना क्या है मेरी धडकन में....? (संकलित)

1 comment:

  1. हम यों जीते हैं

    जीना भी खता हो जैसे

    ज़िन्दगी सिर्फ गुनाहों की सज़ा हो जैसे

    Lajabab..................

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