Sunday, August 28, 2011

मुसलमान लडके

धरती पर गिर कर कलदार की तरह टन्न से बजने वाले

कई मुसलमान लडके मेरे पक्के दोस्त हैं

कई तो इतने कि उनसे किसी बात पर

मेरा आज तक अबोला नही हुआ

बाबरी मस्जिद ढहा दी गई तब भी

और हाल में मुसकमानों को जिन्दा जलाया गया तब भी

हिन्दू होने से पहले जैसे एक लडका हूँ मैं

शरारती,बदमाश और हँसोड

मुसलमान होने से पहले वे भी लडके हैं

और बिलकुल मेरे ही जैसे शातिर

भले ही उनमें भी मेरे जैसी शरारतें कूट-कूट कर भरी हों

मगर यह अहसास कि वें मुसलमान हैं

उन्हें हमेशा डसता ही रहता है

जिसे रहते हुए उनके साथ, मै बेहद करीब से

देखता हूँ छूकर, जबकि मुझे कभी-कभार ही

ख़ुद को याद दिलाना पडता है मैं हिन्दू हूँ

इसके बावजूद कि इस बीच मुझे बार-बार

अपना हिन्दू होना और उसे गर्व से कहना याद दिलाया गया है

मैं महसूस करता हूँ कि आँधी इस बीच

अपने साथ बहुत कुछ ले गई उडाकर

इस बीच हम में से कई हिन्दू लडके पक्के हिन्दू हो गए

और कई मुसलमान लडके पक्के मुसलमान

लेकिन वे इस अँधड में भी मेरे पक्के मित्र बने रहे तो बने रहे

वे मेरे मित्र बने रहे इस वजह से मैं यह जान सका

उन शरारतियों को मेरी तरह जीने के लिए

अपना मुसलमान होना कहाँ-कहाँ नही छिपाना पडता है

ठीक उसी तरह हिन्दू लडकियाँ उन्हे बहुत पसन्द आती हैं

जैसे मुझे इतराकर देखतीं मुसलमान लडकियाँ

लेकिन उन्हे पटाने के मामले में मुझमें और उनमें

एक अंतर साफ है मुझे मुसलमान लडकियों के सामने

अपना हिन्दू होना छुपाना नही पडता

जबकि उन्हें हिन्दू लडकियों के आगे खुद की

पहचान छिपानी पडती है

और जब तक वे उनके बारे मे जान पाती हैं

देर हो चुकी होती है,सच तो ये है कि मेरे मुसलमान दोस्तों ने

जितनी भी हिन्दू लडकियाँ पटाईं,शुरु में उन्होने

किसी को ये नही बताया कि वे कौन है

कई दफे अतिवादी पैरोकार ये जाने बिना कि मेरे साथ

जो मित्र खडा है वह मुसलमान है

मुसलमानों को शुरु कर देते है गालियाँ देना

दोगलेपन की कोई सीमा नही इनकी

विश्वास तो इन पर सूत बराबर नही

यह भी कोई बात हुई

खाओं यहाँ के और बजाओं वहाँ की

उस समय ये मेरे मुसलमान मित्र लडके

धरे रहते है धीरज़,नही करते कोई बहस

उठकर चल देते है चुपचाप,वे इस बारे में

मुझसे भी नही करते कोई बात

लेकिन उस वक्त मैं उनकी आँखो की नमी

अपनी आंखो मे शिद्दत से करता हूँ महसूस

एक बात जो मुझे अच्छी लगती है,मुसलमान लडके

अपढ,निर्धन और निराश होने के बाद भी

दिमाग़ और देह की दृष्टि से पक्के होते हैं

वे मेरे साथ बढ-चढ कर लेते है खेलों मे हिस्सा

मेरी तरह उनकी तेज़ गेंदें पलक झपकते ही

उडा देती है सामने वाले खिलाडी के स्टम्प

किसी जादूगर की तरह उनके भी हाथों की हाँकियाँ

गेंद को नचाते हुए आगे बढती है

और पडोसी गोलची को छकाते हुए कर आती है गोल

यही समय होता है जब ये मेरे मित्र लडके

उन्हे मुसलमानों की जगह खिलाडियों की तरह आते है नज़र

उस वक्त वे उन्हें देखकर कह भी देते हैं

हमे फलाँ खिलाडी जैसे मुसलमान लडके चाहिए

एक बात मैने बारीकी से पकडी

मेरे मुसलमान दोस्त हिन्दू लडकों की तरह

अपने धर्म के बारे मे नही करते ज्यादा बात

मै उनके भीतर संकोच उगा देखता हूँ

जबकि एक मै हूँ मौका मिलते ही

चबड-चबड किए बिना नही मानता

वे डरतें है अपने धर्म की कहने पर पर कहीं

उन्हें पक्का मुसलमान न मान लिया जाए

जबकि उनमें से अधिकतर मेरी तरह हैं

जैसे मै पूजा पाठ नहीं करता

वे भी रोजे वगैरह के चक्कर मे नही पडते

मुसलमान लडके जो मेरे खरे दोस्त है

उनके चेहरों पर छाया स्थायी सूनापन देखकर

हमेशा लगता है कि मेरे अंतरंग होने के बाद भी

ये मुझसे नही कहते मन की

नही दिखाते मुझे अपना रंज खोलकर

फिर ये अपने मन की किससे कहते होंगे

क्या ये मुसलमानों के बीच कहते होंगे सब

बिछाते होंगे अपनो के सामने अपना दुख,

डरता हूँ,ऐसा न हो, अपना दुख कहते-कहते

अपने लोगों के फन्दों मे उसकी तरह से न उलझ जाएं वे

जैसे मुझे हिन्दू को अपने जाल में फाँसने

नाना प्रकार के ताने बुन रहे है मेरे लोग...।

(पवन करण-अस्पताल के बाहर टेलीफोन,राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली)

2 comments:

  1. इस लेख को पढने के बाद एक मशहूर गीत (फिल्म-धुल के फूल, गीतकार-साहिर लुधियानवी) की पंक्तिया याद आ गयी है---

    तू हिन्दू बनेगा, न मुसलमान बनेगा,
    इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा...

    कुदरत ने तो बनाई थी एक ही दुनिया,
    हमने उसे हिन्दू और मुसलमान बनाया...
    तू सबके लिए अमन का पैग़ाम बनेगा,
    इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा ...

    ये दीं ये ईमान-धरम बेचने वाले,
    धन-दौलत के भूखे वतन बेचने वाले...
    तू इनके लिए मौत का ऐलान बनेगा,
    इंसान की औलाद है इंसान बनेगा...

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    1. bahut hi badhiya zawab hai ummaid bhai,इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा...

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